सफ़र...
सफ़र अनजान है इक परिंदे की
फिर भी मचलता,पंख फङफङाता आसमाँ की चाह में
मीलो-मील मंजिल थी उसकी
पर पंखे भी शसक्त थी चाह में..
संघर्षरत् वह परिंदा छु लिया अंततः आसमान को
पर ईष्या से भरा वह झोंका ला पटका फिर जमीं पे उसको
पर पंखों की मचलन ने फिर तैरना सीखा दिया उसको
सफर अनजान है उसकी फिर भी पंख मचल रहे हैं
जा रहा है वह अनवरत्..... इक खोज में...
© ya waris
फिर भी मचलता,पंख फङफङाता आसमाँ की चाह में
मीलो-मील मंजिल थी उसकी
पर पंखे भी शसक्त थी चाह में..
संघर्षरत् वह परिंदा छु लिया अंततः आसमान को
पर ईष्या से भरा वह झोंका ला पटका फिर जमीं पे उसको
पर पंखों की मचलन ने फिर तैरना सीखा दिया उसको
सफर अनजान है उसकी फिर भी पंख मचल रहे हैं
जा रहा है वह अनवरत्..... इक खोज में...
© ya waris