...

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नसीम-ए बहार-ए-लज़्ज़त
#हिमकण

पंचमुखी त्रिकोण सा ढांचा लिए,
कभी गोल गोल मोती जैसे,
वो लगातार गिरते जा थी,
ऐसा लग रहा था जैसे मानो,
मैं उनके पास से गुजरते ही,
थरथराते जा रही थी,
पर मैं हिमाचल में कहीं भी नहीं थी,
मैं तो थी अपने गांव में,
बेला थी सुबह की,
बयार थी भोर की,
मद्धिम मद्धिम...