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वीर
जब तलवार खिंचे तो रक्त चढ़े
जब नाड बजे तो गर्जन हो
जब वीर उठे तो मर्दन हो

जग वीर की गर्जन से काँपे
गज भी पीछे को भागे
शेर भी अपना सिंहासन छोड़े
पर वीर न अपना रास्ता मोड़े

तलवार म्यान से निकल पड़ी
दुश्मन के शीने में जा के चुभी
दुश्मन ने जब दम तोड़ दिया
वीर तभी मुस्काया हैं

जब तलवार खिंचे तो रक्त चढ़े
जब नाड बजे तो गर्जन हो
जब वीर उठे तो मर्दन हो

वीरो की एक बात निराली
वह जान से खेला करते हैं
वो आन से जीते रहते है।
वो शान से मरना चाहते है

पर उन्हें शीश झुकाना पसन्द नही
उन्हें आँसू बहाना पसन्द नही
मातृभूमि के रक्षा में शिर कट जाये
पर शीश झुकाना पसंद नहीं

जब ललकार दिया वीरो ने
दुश्मन रण को छोड़ दिया
अब औकात हैं क्या इस दुश्मन की
जो हमकों फिर से छेड़ सके

जब तलवार खिंचे तो रक्त चढ़े
जब नाड बजे तो गर्जन हो
जब वीर उठे तो मर्दन हो

वीर/चरन सिंह
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© Charan singh

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