...

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कयामत
अगर जिंदगी किसी जंग से कम ना होती, तो रोज कयामत ना होती.
कोई पैसों की दोड़ में आगे आना चाहता है, तो कोई दूसरों को निचा दिखाना चाहता है.
ये इंसान पता नहीं क्या ही पाना चाहता है, इतना मिल ने पर भी क्यू खून के आंसू रोता है.
पता नहीं किस ख्वाब में डूबा है, चांद को पाने की हसरत मे सितारों को भी खो बेठा है.
हज़ारों की भीड़ में तन्हाई को गले लगा लिया है
किस्मत का खेल अजीब है जो करीब है वो दूर होता जा रहा है और अपनों के ही खंजर घोंप जा रहा है
हर एक दिन कयामत ना होती अगर अगर अपने हाथों खुद अपनी किस्मत खोयी ना होती