उसे उल्फ़त नहीं तुमसे........(ग़ज़ल)
तेरी क़ुरबत मेरी दुनिया, मेरी दुनिया तेरी क़ुरबत
मिली फ़ुरक़त मुझे फिर क्यों, मुझे फिर क्यों मिली फ़ुरक़त
न आई रास ही उल्फ़त, न भाया वस्ल ही मुझको
है ये ख़लवत मेरी हमदम, मेरी हमदम है ये ख़लवत
मना तो लूं उसे मैं पर हक़ीक़त ये है अब उसको
कोई रग़बत नहीं हमसे, नहीं हमसे कोई...
मिली फ़ुरक़त मुझे फिर क्यों, मुझे फिर क्यों मिली फ़ुरक़त
न आई रास ही उल्फ़त, न भाया वस्ल ही मुझको
है ये ख़लवत मेरी हमदम, मेरी हमदम है ये ख़लवत
मना तो लूं उसे मैं पर हक़ीक़त ये है अब उसको
कोई रग़बत नहीं हमसे, नहीं हमसे कोई...