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मनमानी मन की
एक सिक्के के दो पहलू से है हम दोनों,
फिर भी साथ रहना
मनमानी है इस मन की।
जानता हूँ चाहत कभी नहीं पनपेगी मन में तुम्हारी,
बिना शर्त चाहना तुझे
मनमानी है इस मन की।
जानता हूँ इस खेल में हारना है तय मेरा,
खेलना फिर भी
मनमानी है इस मन की।
जनता हूँ हवाओं का रुख तेज बहुत है,
हर शाम तेरे नाम के चिरागों से सजाना
मनमानी है इस मन की।
जानता हूँ यह लिखकर भी कुछ बदलने वाला नहीं,
लेकिन हर रचना का हिस्सा तुम्हे बनाना
मनमानी है इस मन की।
© Joginder Thakur
फिर भी साथ रहना
मनमानी है इस मन की।
जानता हूँ चाहत कभी नहीं पनपेगी मन में तुम्हारी,
बिना शर्त चाहना तुझे
मनमानी है इस मन की।
जानता हूँ इस खेल में हारना है तय मेरा,
खेलना फिर भी
मनमानी है इस मन की।
जनता हूँ हवाओं का रुख तेज बहुत है,
हर शाम तेरे नाम के चिरागों से सजाना
मनमानी है इस मन की।
जानता हूँ यह लिखकर भी कुछ बदलने वाला नहीं,
लेकिन हर रचना का हिस्सा तुम्हे बनाना
मनमानी है इस मन की।
© Joginder Thakur
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