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#सत्य@बोलना%कला
सत्य बोलने की कला,
जानना है जरूरी।
वरना बनी रहेगी,
आफत और मज़बूरी,
करनी पड़ेगी बबुआ,
ज़िंदगी भर मज़दूरी।
उम्र ढल जाएगी,
न होगी कोई इच्छा पूरी।
सत्य का यह काल नहीं,
ना ही हरिश्चंद्र का।
कला चाहिए वरना होगा,
ताज़उल्लूचंद का।
सत्य बोलो, प्रिय बोलो,
मुँह खोलो, पहले तोलो।
घोड़े की पिछाड़ी,
साहब की अगाड़ी मत डोलो।
हर समय बोलना ही क्यों,
तुम्हीं जानकार नहीं।
बिगड़ता है बिगड़ जाए,
तुम्ही जिम्मेदार नहीं।
बात की वात है प्यारे,
हाथी भी, हाथी पाँव भी।
बकरी की जात है,
खा जाएगी सौ गाँव भी।
पात भर औकात लेकर,
किस-किस से टकराओगे।
ओ सतिया बाबू ,
तुम हरिश्चंद नहीं बन पानोगे।
ठाट-बाट छिन जाएगा,
पुत्र-पत्नी बेच पाओगे?
मरने से पहले प्यारे,
तुम मरघट पहुँच जाओगे।
अक्सर देखो-समझो-बूझो!
सत्य नहीं तो अर्ध सत्य सही।
धर्मराज सी समझदारी दिखाओ,
राज न सही कोई नाराज़ भी तो नहीं।
© drajaysharma_yayaver