...

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हारे हुए इंसान में भी दिखता है...
कभी इकरार में होता है,
कभी इनकार में होता है
ये तो 'समझौता' है यारों,
ये जिंदगी के बाजार में बिकता है

कहीं गुमान में दिखता है,
कहीं सम्मान में दिखता है
कहीं अरमानों के टूटे हुए
मकान में दिखता है
ये तो 'समझौता' है यारों, जज्बातों
के बिखरे सामान में दिखता है

कोई निभाने के लिए करता है,
कोई जताने के लिए करता है
कोई 'मैं' और 'तुम' को 'हम'
बनाने के लिए करता है
ये तो 'समझौता' है यारों,कोई
खुद को मिटाने के लिए करता है

किसी ने समझी कहाँ है
आज तक कीमत इसकी
खुल के अपनों पर ही
बरसती है नेमत इसकी

कभी सिक्कों की खनक
इसको खरीद पाई ना
ये तो 'समझौता' है यारों,
हारे हुए इंसान में भी दिखता है



© राइटर.Mr.Malik Ji...✍