...

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#यकीन #भरोसा
विस्श्वास ,भरोसा ,यकीन
से होता हुआ श्रद्धा तक पहूँच पाया हूँ मैं !
लड़खड़ाते ,चलते ,भागते हुए
अब संभलकर चलना सीख पाया हूँ मैं !
इधर उधर ठोंकरें खा खाकर खूद को
खूद में समेटकर चलना सीख पाया हूँ मैं !

नाकाम कोशिशों के अनगिनत प्रयोगों से
बोध ग्रहण करके कुछ सौभाग्य मिला है मुझे !
कदम दर कदम चुनौतियों को ललकार
कुछ थोडी सी सफलता की सिढियां चढ पाया हूँ मैं !
न किंचित् -स्वयं को समजकर ही अब
कुछ बन पाया हूँ मैं !!


मैं पर भरोसा था , उपर से अदम्य उत्साह भी !
कमीयाँ लाख रही,ठोकरों ने ही बतायी राह सही !!

© Bharat Tadvi