एहसास-ए-ज़िंदगी
© Shivani Srivastava
कुछ उलझनों की दुनिया से अब बहुत दूर जाना है मुझे...
लोगों से तो कम,अब अंतर्मन से ही सुकून पाना है मुझे..
होइहें वही जो राम रचि राखा'यही भाव अपनाना है मुझे..
कुछ उलझनों की दुनिया से अब बहुत दूर जाना है मुझे..
किसी को मैं बुरी ना लग जाऊं,यही परवाह रही अब तक..
पर कौन जाने किसको,किस बात की चाह रही कब तक ..
लेकिन अब सहज ही ख़ुद को ईश्वर का प्रिय बनाना है मुझे.
कुछ उलझनों की दुनिया से अब बहुत दूर जाना है मुझे।
सही कहा गया है कि ये दुनिया मोह माया का जाल ही है..
अत्यधिक विचार करना भी तो मस्तिष्क का जंजाल ही है..
दिल में चुभते हुए इन जंजालों से ख़ुद को छुड़ाना है मुझे..
कुछ उलझनों की दुनिया से अब बहुत दूर जाना है मुझे...
-✍️Shivi✍️..(एहसासों की कलम से)
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