...

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मैं चाहतीं हूँ !!!
खोल दो मुझे इन बन्धनों से मैं उड़ना चाहतीं हूँ!!!!
समय समाज के बन्दिशों से लड़ कर
खुले आसमान से जुड़ना चाहती हूँ !!!


खुली हवा में साँस लेकर बारिश की पहली बूँद पीना हूँ !!!
कठपुतली बन जीवन बिताया है
पर अब पंछी का जीवन जीना हूँ !!!


आँखों मैं सपने है उन्हें सच करने की जंग लड़ना हूँ !!!!
पर सपनों के लिए अपनों से जंग
यह सोचकर रुक जाती हूँ !!!


उम्र के हर पड़ाव को खुल कर जीना चाहती हूँ!!!
हवा की वोह रुख बनकर
हर तूफान मोड़ देना चाहती हूँ !!!