में एक लफ्ज़ हूँ
कोई बदलता हुआ मौसम सा
में कहीँ ठंड सी रात, कहीँ नए सूरज का धूप हूँ..
में कहीँ मंदिरों के ढोल, कहीँ अजान
और कहीँ गुरुद्वारे का गुरुबानी गीत हूँ..
मेरे शर पर है कहीँ समान से भरे थैली है,
कहीँ शर पर बांधे कफ़न एक सिपाही हूँ..
में आग भी हुँ जलता हुआ चाय टापरी के चुल्ले की,
कहीँ भट्टी से अपना पेट भरता मज़दूर का रोटि हुँ ..
में अखबार हूँ, राजनीती के चर्चे भी, कहीं मशवरा हूँ
कहीँ खामोश शायर का, शोर मचाता हुआ एक लफ्ज़ हूँ
© wingedwriter
में कहीँ ठंड सी रात, कहीँ नए सूरज का धूप हूँ..
में कहीँ मंदिरों के ढोल, कहीँ अजान
और कहीँ गुरुद्वारे का गुरुबानी गीत हूँ..
मेरे शर पर है कहीँ समान से भरे थैली है,
कहीँ शर पर बांधे कफ़न एक सिपाही हूँ..
में आग भी हुँ जलता हुआ चाय टापरी के चुल्ले की,
कहीँ भट्टी से अपना पेट भरता मज़दूर का रोटि हुँ ..
में अखबार हूँ, राजनीती के चर्चे भी, कहीं मशवरा हूँ
कहीँ खामोश शायर का, शोर मचाता हुआ एक लफ्ज़ हूँ
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