...

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हक़-ए-इज़हार
#AnticipatingLove

सोचा था एक इत्तेफाक बनाऊंगी,
जो था दिल में एक अरसे से,
उसे एक पन्ने में पीरो,
अपनी मोहब्बत की नाव चलाऊंगी,
पर वक़्त किसके बस में आ पाया है,
हमने जो भी सोचा है,
एकाएक आपरूपी एक समान ही,
कहा कुछ मिल पाया है,
पर छेड़ी है हमने भी एक जंग,
अपने मन में,
अपने मनमीत के संग,
जहां मुझे ना जितने की लालसा है,
और ना हारने का मलाल,
मैं तो बस करना चाहती हूं,
अपने प्रेम का इज़हार,
शिघ्र ही आया वो क्षण भी,
धर दी मैंने अपने प्रेम की लाज,
उनके अचंभित लहजे के साथ,
वो मुस्कुराये,
और चल दिये राह,
मन के हिलोरे अब,
तितलियों के संग उड़ रही है,
थी जो आभा मेरे हृदय में,
वो अब कामनाओं के पंख ले रही हैं,
रागिनी गीत गा रही है,
और मेरी आंखें घड़ियां गिन रही हैं,
इंतज़ार की,
मुलाक़ात की,
और फ़िर से उनके दीदार की....
© --Amrita