...

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कांपते हाथ
कांपते हाथ मेरे,
बिलखती आंसूओ की बौछारें,
दिल खाली खामोशी में डूबा,
दिमाग सवालों के मजबूत घेरे बना बैठा।

कल से भागू मैं तो,
कल की चिंता मैं पडू,
कल-कल करतें करतें,
आज की रात आखिरी हो जैसें,
आज की तलाश में निकल जाऊ मैं।

रातों को कांपते हाथ मेरे,
कहीं भीच दे ना मेरा गला,
बिस्तर पर करवटों की सिकुड़न,
तकियों का सुबह तक गीला रहना,
कहीं खत्म ना करदें।

खुद हीं को मेरे,
इस बात से हार रात घबराउ मैं,
हाथों को कस कर पकडू मैं,
सब ठीक हैं कह कर खुद को सहलाउ मैं,
आँसू आँखों से निकले भी अगर तो,
धूल गयीं आँखों में,
यह कह कर खुद को झूठा दिखलाउ मैं।

हर रात दिल का डर,
घेरता हैं रातों के चैन को,
सुबह की तलाश रखूं जारी,
या फिर ये रात इस तड़प की आखिरी हो हमारी।

अंधेरा बढ़ता जा रहा मेरी तरफ,
रोशनी किस दिशा से आये,
किस दिशा में तलाश में जाऊ मैं,
सूझम् से विशालता की और बढ़ रहा अंधेरा मेरा,
ढ़क रहा मुझें अंधेरे की खामोशी में,
हाथ पैर मार कर थक चुकी हुँ मैं।

रोशनी झूठ हैं,
अब तो लगता हैं यहीं,
अब जो होगा देखा जायेगा,
जितने भी गिने चुने दिन बचे हैं,
जिंदगी के मेरे।
© shivika chaudhary