...

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नए साँचे में ढल गया....
वादे पे उसके ऐतबार किया वो बदल गया
रहबर समझते रहे जिसे रहज़न निकल गया

रंग-रूप बदल लेना किसी मोजज़े से कम नहीं
हर मौक़ा को ताड़कर नए साँचे में ढल गया

ऐसा लगाया सच पर पहरा लोग लड़ने लगे
यहाँ खोटा सिक्का भी सोने के भाव चल गया

बड़े जतन से उसने लगाया नफ़रत का जंगल
आज देखो तो शजर शजर कितना फल गया

उसने ईजाद कर डाला अश्क़ों की सियासत
दंगों में लोग मरे तो उसका दिल उछल गया
----राजीव नयन