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काश !
काश!
कुछ यूं होता तो अच्छा होता, मैं तुझसे बातें ना करता तो अच्छा होता,
मोहब्बत तो छोड़ अब अपनी दोस्ती भी नहीं रहीं,
यार! तू मेरे लिए अजनबी रहता तो अच्छा होता,
यूंही तेरे झलावो में कैद कर लिया ख़ुदको,
रजत तू आज़ाद परिंदा ही रहता तो अच्छा होता,
ये जज़्बातों भरी शायरीयां सुना बैठा तू पत्थर दिल को,
खुद लिख के ख़ुद ही महसूस कर लेता तो अच्छा होता,
ये जो हसीन मुस्कान देकर वादें करते हैं, इन पर ऐतबार ना करता तो अच्छा होता,
वक्त ने हक़ीक़त बयां करी तो अब एकांत बैठा हूँ,
शुरू से शौर का अंत समझ लेता तो अच्छा होता,
मैं तुझसे बातें ना करता तो अच्छा होता।
© Rajat
कुछ यूं होता तो अच्छा होता, मैं तुझसे बातें ना करता तो अच्छा होता,
मोहब्बत तो छोड़ अब अपनी दोस्ती भी नहीं रहीं,
यार! तू मेरे लिए अजनबी रहता तो अच्छा होता,
यूंही तेरे झलावो में कैद कर लिया ख़ुदको,
रजत तू आज़ाद परिंदा ही रहता तो अच्छा होता,
ये जज़्बातों भरी शायरीयां सुना बैठा तू पत्थर दिल को,
खुद लिख के ख़ुद ही महसूस कर लेता तो अच्छा होता,
ये जो हसीन मुस्कान देकर वादें करते हैं, इन पर ऐतबार ना करता तो अच्छा होता,
वक्त ने हक़ीक़त बयां करी तो अब एकांत बैठा हूँ,
शुरू से शौर का अंत समझ लेता तो अच्छा होता,
मैं तुझसे बातें ना करता तो अच्छा होता।
© Rajat
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