...

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विश्वास.. भरोसा
भरोसा टूटा है..
बिखर कर बिखरा है..
जो सब कुछ था वो अब कुछ न रहा है..
एक वक्त के बाद अपना था..
वो अब अपना कहाँ रहा है..
आख़िर भरोसा, भरम जो टूटा है..
मेरी टूटी हुई हिम्मत की आस था..
या मेरे खोये हुए विश्वास की नींव था..
मग़र कुछ गुनाहों, कुछ दरारों की वजह से सब कुछ टूट कर बिखर गया है..
जो अपना हमारा आशियाना था..
अब सबकुछ आहिस्ता आहिस्ता बिखर चुका है..
हाँ...