...

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ज़िंदगी.....
जिंदगी ढुंढने की तलाश में, फिरती रही बंजारों की तरह,
ज़िंदगी ने कहा कंभख्त मुझ में ही सफ़र है,
मुझ जैसा कोई न हमसफर है,
मुझ से ही प्रारंभ है, मुझ से ही अंत है,
मुझ से ही खुशी है, मुझ से ही गम है,
मुझ से ही आबादी है, मुझ से ही बर्बादी है,
मुझ में ही इश्क़ है, मुझ में ही बेवफाई है, ...