...

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दूरी...
मुजमे कुछ कमी है, पर तू भी तो अधूरी है...
फासले तो मिट गए लेकिन, नजाने केसी ये दूरी हैं...

संभल संभल कर चलना पड़ता है...
बात बात पे लड़ना बड़ा अखरता है...

मुश्किल है राहे क्योंकि रास्ते जो मुड़े थे...
ना थे साथ एक दूसरे के पर,
किसी डोर से तो हम जुड़े थे...

बातें तो करते हैं,
पर अब बात कहां होती है...
ऐसे ही तो अब हर शाम होती है...

जगते हैं रोज़ नई आशाओं के साथ...
शाम होते-होते खुद को समेट लेते हैं...
बस यूंही अब हम जी लेते हैं...

मुजमे कुछ कमी हैं, पर तू भी तो अधूरी है...
फासले तो मिट गए लेकिन, नजाने केसी ये दूरी हैं...