...

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Ghav...!?
घाव कर
घाव की फ़िक्र करते हो
ग़ज़ब शोक पालते हों...

मलहम लगाते लगाते
घाव की गहराई पूछते हो
ज्यादा गहरा तो नहीं
ज्यादा दर्द तो नहीं
ग़ज़ब सवाल करते हो

अपने रूमाल से  आंसु पोंछते पोंछते
मेरे आंसुओं का कारण पूछते हो
अपने हाथों से मेरे हाथों का नाप करते करते
मेरी  फिर से रज़ा पूछते हो
मैं हाथ फिर से थाम लुं न
मैं फिर से
उन उंगलियों का अकेलापन संभाल लुं न
ग़ज़ब यकीन दिलाते हो

रातों से गुफ्तगू कराते कराते
खामोशी से रूबरू होने की आदत डलवाते हो
लगाव अदा कर
ज्यादा लगाव तो नहीं
ज्यादा जज़्बात तो नहीं
ग़ज़ब क़र्ज़ चढ़ाते हो

मन में कस्तूरी सी महक छोड
तुम इतनी कैसे बहक जाती हो
दस्तूर नहीं है हमारा मिलना
तुम इतनी ज़िद्द क्यों करती हो
ग़ज़ब अधूरी सी कसक सजा जातें हो


© HeerWrites