...

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मेरा जीवन
साँसों में सिमरू,
अश्कों से छलकाऊं,
झर-झर झरते नैनों से
मैं तुम पर रीझि जाऊँ
घड़ी घड़ी की सिसकन में
मैं पल पल
आर्तभाव से तुम्हें पुकारूँ
येन केन प्रकार से.. हे..
दुर्लभ प्रभूजी मैं तुमको सुलभ बनाऊँ
बताओ तो प्रभूजी....
कैसे तुम्हें रिझाऊँ...
मैं कैसे तुम्हें रिझाऊँ..
यदि मेरे बस का होता,
तो अबतक तुम रीझ जाते..
पल पल मदद को हाज़िर...