...

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रद्दियो की गुहार
आज मै आपको कोई कहानी नहीं सुनाऊँगा
इतिहास में बीते लम्हों की रवानी नहीं सुनाऊँगा,
यह न तो किसी पराक्रमी की वीर गाथा है
और न ही कोई बुजुर्ग हमे बचपन में यह गीत सुनाता है।

आज का विषय बड़ा गंभीर हैं, जरा गौर फरमाइएगा
और हो सके तो इस विषय के विषय में थोडी जागरूकता
भी फैलाइएगा|
आज बात करेंगे हमारे न्यायालय की
वो इंसाफ की गुहार लगाती रद्दिया
और अंगिनत अर्जियों से बने हिमालय की।

इस समस्या का कारण और कारक हिन्दमहासागर से भी गहरा है,
न्याय और पीठित के बीच पैसों के भूखे दानवों का पहरा है।
सत्य और तथ्य का यहाँ कोई मूल्य नहीं
कागजी नोटो का बोल बाला है,
गुनहगारों को पीडित और पीड़ितों को गुनहगार बनाने का
यह खेल बड़ा निराला है।
यहाँ बगैर रिसवत इंसाफ पाना
कोयले की खान में सोना खोजने जैसा है
कहाँ से आते हैं ये लोग जिनका भगवान भी पैसा है।

इंसाफ के इंतजार में फाइल का हर एक पन्ना बिखर जाता है,
और फिर तारीख गुजरते - गुजरते पीठित ही गुज़र जाता है।
पीड़ित परिवार के बुझते हुए चिरागों का किसी न किसी को तो जिम्मेदार होना चाहिए,
न्याय के खातिर कड़कती नोटों के बजाए
सच्चे तथ्यों,गवाहों और सबूतों को आधार होना चाहिए ||
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