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जन्म दिया है कोई एहसान नहीं किया...
अनामिका जी आपकी सोच...

जन्म दिया है तो
पालकर एहसान नहीं किया
पालने के लिए देखभाल किया है तो भी
कोई एहसान नहीं किया
देखभाल के लिए जरूरतें पूरी की
तो ये तो करना ही था
इसमें भी कोई एहसान नहीं किया

जन्म देने के लिए
आग्रह तो किया नहीं था
न देते जन्म
देकर कोई एहसान नहीं किया
तपते गिरते तबियत में
रात रात जागे हो तो
एक चीख पर बिना सोचे दौड़े हो तो क्या
भूख प्यास मर गई हो उनकी चिंता में तो क्या
जन्म दिया है कोई एहसान नहीं किया

जन्म देने का मतलब कतई ये नहीं
कि उन पर तुम्हारा एकाधिकार है
ये जीवन उनका आजादी उनकी है

वो करेंगे दिशाएं तय
रास्ते भी वे ही खुद चुनेंगे
कि चलना तो उन्हीं को है
चलने के लिए वे आपके पैर नहीं मांगेगे

क्या हुआ चलते हुए
उन्हें कोई चोट लग जाए तो
दिल आपका छिल जाए

किसी अनहोनी की आंशका से
दिल बार बार आपका घबराए
क्या हुआ जो ठोकर लगते ही
मुंह से मां निकल जाए
नहीं पड़ता फर्क किसी बात का

उन्हें जिद है अपनी हर बात का
उन्हें यकीन है दो चार दिनों की
मुलाकात का
क्या हुआ अगर ये मुलाकात
जिंदगी पर सवाल बन जाए
जी का जंजाल बन जाए

झेलना और सहना तो पड़ेगा
जन्म जो दिया है
कोई एहसान तो नहीं किया
जिगर का टुकड़ा जो है
आंसू में घर डूबता है तो डूब जाए
घर और संस्कार आपके बनाए हैं
ये बिखरता है तो बिखर जाए

चार दिन अखबार की सुर्खियां
आग की तरह फैलेगी
दिल सबके कांप जाएंगे
फिर किसी अगली खबर तक
जिद और मर्जी चलाएंगे
तुम डरते हो तो डरते रहो
जन्म दिया है कोई एहसान नहीं किया

क्या हुआ अगर उन्हीं से है
तुम्हारी दुनिया की रौनकें
उनकी रौनकें कहीं किसी अंधेरे में है
उनके बिना चाहे हो वीरान तुम्हारी दुनिया
उनकी रंगीनियां अपनों से बाहर है

नये जमाने का चलन यही है
क्या हुआ अगर आखरी सांस पर
वे तुम्हें ही याद करते जाएंगे
कहेंगे फिर भी यही
जन्म दिया है कोई एहसान नहीं किया
वे क्या जानेंगे तुम्हारे मन की पीड़ा
क्योंकि तुमने जन्म दिया है
जन्म देकर कोई एहसान नहीं किया है।

© राइटर.Mr Malik Ji....✍