...

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रंग ए ज़िंदगी
रंग-ए-जिंदगी


यह जिदंगी एक रंग ही तो है..
वेवक्त का मलंग ही तो है।


हाँ कुछ अपने ठुकरा गये..
पर कुछ पराये संग भी तो है।


जिदंगी यह रंगीन समा..
कुछ रंग यहाँ झूठे हैं।

कुछ रिश्ते हम समेट गये..
पर कुछ अभी भी हमसे रूठे हैं।


कभी मुस्कान का रंग लगा,
तो कभी इश्क़ में जंग लगा।

दिल यह धड़कन से मिला,
तभी प्रेम का रंग लगा।


कभी सूरज की लाली, तो कभी आसमान यह नीला है..
कहीं जिदंगी रूकी पड़ी है, तो कहीं खुशियों का मेला है।

कभी यह दर्द में झुकी पडी, तो कभी आसुओं में गिला है।
कुछ दर्द संग यह मुस्कान ही तो इस जिदंगी का सिलसिला है।


कुछ ऐसी ही जिदंगी रंगीन है...
कभी खुशहाल तो कहीं समा गमगीन है।


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