...

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ऐसे बरसी सावन,,,
ऐसे बरसी सावन,
जैसे सदी के बाद लौटी हों पीहर में,
और मिलना चाह रही, हर एक से अपने शहर में।
अपनी काली घटा को लहराते हुए,
मदमस्त होकर मुस्कुराते हुए।
बताते हुए हर दिन का हाल,
खबर लेती अपनी पीहर के प्रत्येक का,
और रो डालती हैं,सुनकर यह प्रवासकाल।
फिर हल्की हल्की फुहार से तेज़ी से तेज हो जाती हैं।
प्रहसन से विमुक्त, अमर्ष (क्रोध) से अचानक रोती सी हो जाती हैं।
ऐसे बरसी सावन,
जैसे सदी के बाद लौटी हों पीहर में,
और कर रही सवाल...