...

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चरित्रहीन
कैसे-कैसे लोग हैं, जैसे-तैसे तर्क दे कर
ऐसे-वैसे लोगों को भी वे सही बताते हैं

एक बूढ़ा है, मेरे पड़ोस में ही रहता है
लोग उसके जवानी के किस्से सुनाते हैं

जो कभी मुँह मरता फिरता था यहाँ-वहाँ
'अब अच्छा है' मुझे लोग यही पढ़ाते हैं

पढ़ रहा हूँ उसे वर्षो से, मैं कैसे समझाऊं
कि 'दुश्चरित्र', कब्र तक गंध मचाते हैं
© prabhat