...

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तारों की नुमाइश
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं चाँद पागल हैं अंधेरे में निकल पड़ता हैं।
मैं समंदर हूँ कुल्हाड़ी से नहीं कट सकता कोई फव्वारा नही हूँ जो उबल पड़ता हैं
कल वहाँ चाँद उगा करते थे हर आहट पर अपने रास्ते में जो वीरान महल पड़ता हैं
ना त-आरूफ़ ना त अल्लुक हैं मगर दिल अक्सर नाम सुनता हैं तुम्हारा तो उछल पड़ता हैं
उसकी याद आई हैं साँसों ज़रा धीरे चलो धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता हैं।
Anju
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