...

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नासमझ मर्द..
ऐसे कैसे मर्द कुछ होते हैं
ज़रा ज़रा सी बात पर
नाराज़गी जता कर
नाराज़ कितने होते हैं
मान मनौअल भी
हम ही करें
अभिमानी ठहरे बड़े ये
तभी तो घमंडी
अपनी ही बात पर
अड़े होते हैं

कसम, भरोसा, आस
को पहले बड़ी आसानी से
ये तोड़ते हैं
ख्वाहिशों को पर लगा
धीरे धीरे फिर उसे
बड़ी आसानी से
कतर देते हैं

नहीं..सभी नहीं
मर्द बेदर्द सब
कहाँ होते हैं
रुलाते हैं कुछ तो
कुछ दर्द में ख़ुद भी
फूट फूट कर
रोते हैं
मगर......
सच है
नासमझ अहंकारी मर्द
ज़िद में
अपनी ही औरत को
समय से पूर्व
पूर्णतः
ज़र्द कर देते हैं..


© bindu