...

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बूढ़ी आंखें
बाबा की बूढ़ी आंखों ने क्या क्या मंजर देखा है
कहां लुटी निम्मो की अस्मत बूढ़ी आंखों ने सब देखा है
पानी की बूंद बूंद को तरस गया सारा गांव
मीठे कुंए पाट दिये बूढ़ी आंखों ने सब देखा है

बहारें आकर दिल में डेरा डाला करतीं थीं
वीरान हुईं दिल की बस्ती बूढ़ी आंखों ने सब देखा है

कल तक तो सारे मज़हब साथ में रहते थे
बांट दिए हिन्दु मुस्लिम बूढ़ी आंखों ने सब देखा है

सत्य बन्दी बना हुआ है झूठ की सभाओं में
कराहती है मानवता बूढ़ी आंखों ने सब देखा है

आम बोये किन्तु फसल उगी बबूलों की
गांव हो गये कैसे जंगल बूढ़ी आंखों ने सब देखा है


© सरिता अग्रवाल