...

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जीवन की सुबह...
जानते हो....
सुबह की सबसे बड़ी खूबसूरती ये है
कि यह नवजात शिशु सी
निश्छल और भोली ...!

पुरानी तिथियों की स्मृतियों को
ढांप देती है थोड़ी देर को
जब तक की हम स्वयं उन्हें
न खोज लाएं!!

और मैं चाहूँगी कि सुबह की
पहली किरण के साथ
तुम खोजना...
दूब पर रखी उस
ओस की बूंद में प्रेम को...

नर्म धूप में अपनत्व को...
तुम ढूँढना रात की बाहों में खोए हुए अपने किसी सपने को
जिसे समय ने बिसरा दिया हो...

वे स्मृतियाँ... जो मनों में दरार डालें...
वे स्मृतियाँ...जो दुख और व्यभिचार पालें
तुम भूल जाना उन्हें...
जिस में मन उद्विग्न रहा हो...संतप्त रहा हो...

फूलों की खुशबू की तरह
हवाओं में तैर कर
तुम व्याप्त हो जाना प्रत्येक उर में
सुबह की लालिमा की तरह ढांप लेना
दुखी हृदयों के संताप को...

"सुनो... तुम जीवन की सुबह बन जाना
जिसे जीने के लिए
मेरे पास पूरा दिन हो..."