...

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जीवन धारा
बह रही है यह जीवन धारा
नदी की धारा जैसी तो लगती है,
नदी की धारा की तरह यह भी ,
बहुत कठिन रास्ता नापती है।
साथ इसके चल रहे हैं ,
मान अपमान भरा ठोकर अनेक,
चाहे पड़ा है पहाड़ जैसी वाधा
रूकना नहीं है काम है अनेक ।


कभी शीतल,कभी उग्र बनकर
बोझ से लदे,नदी आगे बढ़ती है ,
ज़ुल्म को सहकर भी आगे बढ़ना है
यही इसका धर्म और कर्म है।
जीवन धारा भी कुछ ऐसा ही है
कभी नहीं थकती बहती जाती है ,
सुख दुख ,मान अपमान सहकर
सदा आगे बहती ही जाती है।