...

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।। बेदर्द जिंदगी ।।
जिंदगी के गम को हम छुपा ना सके।
ना ना करते बया कर गए।।
ये जिंदगी क्या? तु इतनी शक्त है।
यहां अमीर ही इतने मस्त है।।
क्या? हम गरीब तेरे सन्तान नहीं।
मां की ममता का कोई मान नहीं।।
और तू कितना इम्तेहान लेगी।
धन -दौलत नहीं तू जान लेगी।।
धूप भरे राहो में चलते जा रहें।
पापा कर्ज में डुबते जा रहें।।
हमारे लिए सब किए जा रहें।
तुझे तरस ना आए जिंदगी।।
और तू कितना सताए जिंदगी।
कामों के बोझ से कंधे थक्के जा रहें।।
उम्र बीत गई पर फिर भी काम किए जा रहें।
क्यु तू इतनी बेदर्द है जिंदगी।।
थोड़ा तो हम पर भी रहम कर जिंदगी ।
क्यु हर रोज जीत कर भी हार जाते हैं।।
जिंदगी के खेल से बाहर हो जाते हैं।
अब बस कर दे तू अपना खेल।।
तेरी परीक्षा अब दी नहीं जाती।
ये दर्द भरी तन्हाई सही नहीं जाती।।
जिंदगी के ग़म को हम छुपा ना सके।
ना ना करते बया कर गए।।