...

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स्वप्न
आंखे निर्दोष थी
मन चंचल था
स्वप्न किसी बच्चे की तरह
खुले मस्तिष्क में विचरण करते थे l
कुछ स्वप्न भोले थे
डर कर बैठ गए
कुछ स्वप्न हठी थे
वास्तविकता में उतर आये
कुछ हिम्मती थे
लड़े जबतक चकनाचूर
होकर धूल में न मिल गए
इतनी मौतें देख कर
फिर आंखों ने स्वप्न देखना
बंद कर दिया
खुल चुकी थी आंखे
अब स्वप्न डराते हैं

© Shraddha S Sahu