...

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दास्तान ए ख़ाक
उलझे हुए ख़यालों को सुलझाना नहीं आया
ये ज़िंदगी रूठी रही, मनाना नहीं आया

चुन-चुन कर बिछा दिए फ़ूल उनकी राह में
ख़ुद की राह से कांटों को हटाना नहीं आया

यादों की बारिश में भींगते रहे कुछ इस कदर
नम हो चुके जज़्बात सुखाना नहीं आया

हम बिक गए बाज़ार उनकी खुशियां खरीदते
बदले में कभी एहसान जताना नहीं आया

ये आईना जो पूछ बैठा राज़ 'तबस्सुम' का
फ़िर दिल के ज़ख्मों को छुपाना नहीं आया

© आद्या