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पिता हो जाना


माना जहां में बहुत मुश्किल है,
मां की ममता को समझ पाना,
पर कहाँ आसान होता है बोलो,
एक पिता के जैसे सोच पाना।
मां को अक्सर देखा है हमने,
छोटी बातों पर खुश हो जाती है,
अदनी सी बात पर फिर वो तो,
घंटों आंसू भी बहाती है।
हर बच्चा बता सकता है,
उसकी माँ ऐसी है वैसी है,
ये पसंद है उसे बहुत और,
इस बात पर चिढ़ जाती है।
पर क्या कभी सोचा है ऐसा,
किसी ने अपने पिता के बारे में,
एक शून्य सा भाव लिए चलते,
जैसे शांत रोशनी हो चंचल अंधियारे में।
बस जो चाहा बच्चे ने वो मिला,
कभी मांगा तो कभी बिन मांगे मिला,
दुःख सारे रहे पिता के घेरे के पीछे,
बच्चे को बस खिलखिलाता बचपन मिला।
धीरे धीरे बड़ा हो गया, स्कूल से कॉलेज गया,
माँ से घंटों बात कर पापा की बस खैरियत ले ली,
महीने के एक या दो बार बातें जो होती थी,
पैसे भिजवाए हैं देख लेना पर सिमट जाती थी।
कभी लगता खड़ूस हैं वो,
कभी लगता निष्ठुर कठोर,
कभी लगता बस जिम्मेदारी हैं हम,
नहीं जोड़ती कोई प्रेम की डोर।
फिर एक दिन ऐसा आता है,
वो बच्चा भी पिता बन जाता है,
कहानी बिल्कुल चली जाती ऊपर की ओर,
वो बच्चा भी बन जाता है पिता- निष्ठुर और कठोर।
पापा की फोटो भी तो,
गैलरी में गिने चुने ही मिल पाते हैं,
सपने में भी पापा जो आते तो,
कुछ संवारते ही नजर आते हैं।
माँ हीरा है तो पिता हैं खजाना,
इतना आसान नहीं पिता को समझ पाना,
पूरी जिंदगी जिसने गंवाई अपनी बच्चों पर,
समझने का एक ही रास्ता- स्वयं पिता हो जाना।

✍️
© शैल