...

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माँ...
मुक्कमल होना था मुझे..
माँ की गोद में,
जा के मस्सरुफ हो गया ।

फकत् आँचल ही पकङा था माँ का
हथेली में मेरे सारा आसमान आ गया ।

ये धूप मुझे जलाने चले थे...
माँ का साया पङा मुझ पे,
भरी दुपहरी भी ठंडी शाम हो गया ।

देखा था दर्द से कहराते उसने,
कोई मसला भी न था ..
माँ फिर भी इतना रोई ,
फकत् बहते अश्कों से सैलाब आ गया

खुदा का चाहा था नाम लेना ..
देख माँ, लब पे तेरा नाम आ गया ।

© ya waris