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अब के बिछड़े तुमसे.......
अब के बिछड़े तुमसे, जाने जिंदगी फिर मिले कहाँ,
गर्दिश-ए-हालात-ए-सबब, न होंगे कदमों के निशाँ।
दूर तलक़ जिंदगी, जाने किस मोड़ पर चली लेकर,
तुम भी हो गए पराये, चाहत से मेरी बदगुमां होकर।
अब तो जारी है हरपल, मेरी मोहब्बत का इम्तिहाँ,
गर्दिश-ए-हालात-ए-सबब, न होंगे कदमों के निशाँ।
चाहा था तुमको दिल ने, रहेगी चाहत ये उम्रभर मेरी,
मेरे जीने की तमन्ना, बस चाहत तुम्हारी चाहत की,
अनजान सफ़र पर, राह-ए-तन्हा, मंजिल का न पता,
खोकर तुमको अब रहेगा क्या, हम हों जाने कहाँ।
दिल का जब दिल से ही, न अब रह गया कोई वास्ता,
गर्दिश-ए-हालात-ए-सबब, न होंगें कदमों के निशाँ।
क्या ख़्वाब सजाये, क्या अरमान रहे दिल के तुमसे,
न सोचा था कभी, सफ़र में हो जाओगी दूर हमसे।
जिंदगी खुशमिज़ाज़ मेरी, होकर रह गई बवा-ए-क़ज़ा,
गर्दिश-ए-हालात-ए-सबब, न होंगे कदमों के निशाँ।
© विवेक पाठक
गर्दिश-ए-हालात-ए-सबब, न होंगे कदमों के निशाँ।
दूर तलक़ जिंदगी, जाने किस मोड़ पर चली लेकर,
तुम भी हो गए पराये, चाहत से मेरी बदगुमां होकर।
अब तो जारी है हरपल, मेरी मोहब्बत का इम्तिहाँ,
गर्दिश-ए-हालात-ए-सबब, न होंगे कदमों के निशाँ।
चाहा था तुमको दिल ने, रहेगी चाहत ये उम्रभर मेरी,
मेरे जीने की तमन्ना, बस चाहत तुम्हारी चाहत की,
अनजान सफ़र पर, राह-ए-तन्हा, मंजिल का न पता,
खोकर तुमको अब रहेगा क्या, हम हों जाने कहाँ।
दिल का जब दिल से ही, न अब रह गया कोई वास्ता,
गर्दिश-ए-हालात-ए-सबब, न होंगें कदमों के निशाँ।
क्या ख़्वाब सजाये, क्या अरमान रहे दिल के तुमसे,
न सोचा था कभी, सफ़र में हो जाओगी दूर हमसे।
जिंदगी खुशमिज़ाज़ मेरी, होकर रह गई बवा-ए-क़ज़ा,
गर्दिश-ए-हालात-ए-सबब, न होंगे कदमों के निशाँ।
© विवेक पाठक
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