...

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बेचैनी
बेअदबी जुबां में नहीं ज़हन में है जो नहीं जाती
यकीन मानिए मैंने जुबां को काटकर देख लिया

रास्ते जितने भी मंज़िल के है सब बर्बादी के है
मैंने हर रास्ता कदम कदम चलकर देख लिया

ज़ख़्म अग़र नासुर बन जाएं तो कैसा लगेगा
मैंने ये अपने नाख़ूनों से कुरेद कर देख लिया

ख़ुदा जाने अब ये शब-ए-हिज़्राॅं कैसे गुजरेगी
मैंने ख़ुम-ए-मय होकर के भी सोकर देख लिया

अब कोई इलाज नहीं इस दिल की बेचैनी का
मैंने मां की गोद में भी सर रखकर देख लिया

© charansahab





शब- ए- हिज़्राॅं____विरह की रात‌
ख़ुम-ए-मय____शराब पीकर धुत्त हो जाना