...

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लम्हे
ये लम्हे ठहर से गए है
वक़्त पूछता है आज
जीने के मायने
कभी वक़्त न मिला
कभी जवाब न मिला
आज जब वक मिला
तो जवाब तलाशा
ठहरे हुए वक़्त में
पीछे मुड़कर देखा
कोरी वीरानियाँ थी
बिल्कुल आज जैसी
सड़को पर पसरी है वैसी
मेरे भीतर का अक्स
जैसे बाहर उतर आया है
खुद से कितना दूर
ले गया था वक़्त
आज से पहले
झूठी थी दौड़
रास्ते तो सीधे थे
फिर कैसे थे मोड़
जिनमे उलझा रहा
आज सरे आम हुई
भीतर की शून्यता
तो अहसास हुआ ये
खुद के साथ कितना खुश हूं