...

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कलम उठाने तक का सफ़र

दिल में कुछ खयाल आए । 
जो साथ सो तरह के सवाल लाये । 

सोचा कि क्या मेरे जज्बात लोगों को सच्चे लगेंगे ? 
क्या मेरे शब्द भी कभी किसी को अच्छे लगेंगे ? 


सोचा कि शब्द काटे बनकर रह जायेगे या शब्दरूपी गुलाब कभी खिलेगा ? 
क्या मुझे विचार दुनिया तक पहुँचाने का मौका कभी मिलेगा? 


सोचा कि कैसे मुकाम पाऊँगी मेरी तो किसी सायर से पहचान भी नहीं है ? 
कैसे लिखूंगी अच्छा मुझमे तो अनुभव भी नहीं और ज्यादा ज्ञान भी नहीं है? 

फिर से दिल में कुछ ख्याल आए। 
जो साथ सवालों के जवाब लाये।। 

सोचा कि वक्त के साथ थोड़ा और अनुभव थोड़ा और ज्ञान भी मिल जायेगा। 
शरुआत तो करनी हि होगी बिन किरण थोड़ी गुलाब खिल जायेगा। 

सोचा कि वास्तव में अच्छे हुए शब्द तो लोगों को भी अच्छे लगेंगे जरूर। 
अगर दिल में हुआ जनून कुछ कर दिखाने का तो मुझको मौके मिलेंगे जरूर ।। 

सोचा कि कुछ पाने के लिए कोशिश तो करनी हि होंगी। 
मंजिल तक पहुँच पाऊँगी या नहीं वो बाद कि बात है, मुझे उड़ान तो भरनी ही होंगी।। 

अंत में दिल से कुछ कर दिखाने कि आवाज आयी। 
तब जाकर मैने कलम उठायी। 
                         
© सूरज कुमारी " अल्फ़ाज "