...

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सरकारी हस्पताल
आज उन गलियों में गई थी ,
जहां मैं पहली बार रोई थी ।
इस बार थोड़ी सी मुझे वहां निराशा हुई,
क्योंकि वहां की हालत हो चुकी थी काफी खराब सी।
कही मां अपने बीमार बेटे को तो,
कहीं बेटा अपनी मां के इलाज के लिए घूम रहा था।
पर दुख ज्यादा इस बात का था,
कि सब मरीजों को चक्कर कटवा रहे और मदद के लिए कोई हाथ नहीं बढ़ा रहा था।
कहने को वो आम जनता के लिए बना था,
पर आम जनता को ही कोई सुविधा का लाभ नहीं हो रहा था।
पढ़े लिखे लोगो के काम हो रहे और अनपढ़ यूंही बैठे थे,
उनकी हालत देख आंसू मेरी आंखो से बह रहे थे।
काश हमारे देश के सरकारी हस्पतालों की हालात थोड़ी सुधर जाए,
ताकि देश की आम जनता के मेहनत के पैसे प्राइवेटो में जाने से बच जाए।।
















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