...

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मौत
एक दिन सबको मौत हैँ आनी
कियोंकि मौत हुँ मैं मनमानी ,

ना तो कोई रंग हैँ मेरा, ना हीं कोई आकार
ना तो कोई अंग हैँ मेरा, ना ही कोई घरबार

फिर भी मैं हुँ सबकी जानी पहचानी
मैं हुँ मौत,
मौत हुँ मैं मनमानी।

धर्म हैँ मेरा, कर्म हैँ मेरा, सबको देना हानि
तुम को भी एक दिन निश्चित मौत हैँ आनी


मुझ में नहीं दया कोई
निर्दयीता मैंने अक्सर ढोंई
समय पर सदैव आता,
क्षण भर की कीमत मैंने जानी
सृष्टी के हर जीवन को, एक दिन मौत है आनी

ना रख मुझ से तूँ कोई आशा

मिलेगी तुझको हर बार निराशा

समय से...