...

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दर्द नहीं मुस्कुरा रही हूँ
दर्द नहीं मुस्कुरा रही हूँ ,
आँखों से ही अश्क छुपा रही हूँ ।
लगता नहीं अब अँधेरे से डर मुझे,
न जाने कौन सी गीत गा रही हूँ।
चलती जा रही इन राहों पर ,
मंजिल किधर कुछ नहीं पता,
नहीं पता ये कहाँ मिलेगा ,
बस कुछ आशा लिए जिए जा रही हूं ।

पर दर्द नहीं मुस्कुरा रही हूँ,
आँखों से ही अश्क छुपा रही हूँ ।
न जाने कौन सी कटघरे में खडी हूँ,
सजा मिलेगी या रिहाई इस
इन्तजार मे पड़ी हूँ ।
गुन्हा क्या कुछ नहीं पता ,
बेगुनाही का सबूत लिए लड़ रही हूँ।

पर दर्द नहीं मुस्कुरा रही हूँ,
आँखों से ही अश्क छुपा रही हूँ ।
मैं इस गम रुपी दलदल
मे फंसती जा रही हूँ,
जितना चाहूं निकलना और
ज्यादा धस्ती जा रही हूँ।
नहीं चाहती कि ये दर्द
कभी बाहर आये,
इसलिए हल्की सी मुस्कुराहट
से इसे ढकती जा रही हूँ।
तभी तो दर्द नहीं मुस्कुरा रही हूँ,
आँखों से ही अश्क छुपा रही हूँ ।

© Savitri ..