...

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तेरी बातें
स्तब्ध हूँ चुपचाप खड़ी धरा पर
मौन हूँ देख रही
उस शांत व्योम को।
प्रश्नचिन्ह अनेक समेटे मन में...
धाराएं तरंगिणी की तट से
आकर टकरा रही।
चोट कर रही हृदय पर,
तेरी बातें इन धाराओं की तरह ...
भावनाओं के सिंधु में
निरुत्तर सी मैं
न जाने क्यों.......
अश्रु बूंद नयन में छलक रहे
झुलस रही ज़िन्दगी ....
कड़ी धूप में
सूखे पत्तों की तरह....
वियोग के अग्नि में
समेटे प्रतीक्षा के लम्हें
हर पल
मिटाने को लकीरें
जुदाई के ....
हाथों से..
असमर्थ सी मैं
न जाने क्यों…..



© shalini ✍️