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अमौसा का मेला 😊
महाकुंभ अमावस्या स्नान प्रयागराज 😊☝️


जब भी कुंभ या महाकुंभ का मेला लगे और अमावस्या स्नान का दिन हो तो मुझे गांव में ऐसा माहौल दिखता है कि गुरुवर कैलाश गौतम जी की एक कविता अमौसा का मेला(अमावस्या का मेला) याद आ जाती है।🤗🥰❤️

गांव के सापेक्ष रची गई ये रचना आप भी पढ़ें आपको बहुत अच्छी लगेगी हो सकता है समझने में थोड़ा मुश्किल लगे किंतु पढ़कर आपको गांव की याद जरूर आएगी।😊

भक्ति के रंग में रंगल गांव देखा,
धरम में करम में सनल गांव देखा,
अगल में बगल में सगल गांव देखा,
अमौसा नहाए चलल गांव देखा।

यहू हांथे झोरा वहू हांथे झोरा,
कांधे पर बोरी कपारे पर बोरा,
कमरी में केहू रजाई में केहू,
कथरी में केहू दुलाई में केहू,

आजी रंगावत हईं गोड़ देखा,
हंसत हवें बब्बा तनी जोड़ देखा,
घुँघुटवे से पूंछे पतोहिया की अईया,
गठरिया में अब का रखाई बतैहा।

एहर हवे लुगा ओहर हवे पूड़ी,
रामायण के लगे है मंडवे के ढूंढी,
चउर और चूरा किनारे के ओरी,
अ नईका चपलवा अंचारे की ओरी।

अमौसा का मेला अमौसा का मेला,
इहे हवे भैया अमौसा का मेला.....।

मचल हउवे हल्ला चढ़ावा उतारा,
खचाखच भरल रेलगाड़ी निहारा,
एहर गुर्री गुर्रा ओहर लोली लोला,
बीचे में हउवै शराफत से बोला।

चपायल है केहू दबयाल है केहू,
घंटन से ऊपर टंगायल है केहू,
केहू हक्का बक्का केहू लाल पियर,
केहू फनफनाता कीरा के नियर।

बप्पा रे बप्पा दईया रे दईया,
तनी हमे आगे बढ़े देता भईया,
मगर केहू दर से टसकले न टसके,
मसकले न मसके।

छिड़ल ह हिताई मिताई के चर्चा,
पढ़ाई लिखाई कमाई के चर्चा,
दरोगा के बदली करावत है केहू,
लग्गी से पानी पियावता है केहू।

अमौसा का मेला अमौसा का मेला,
इहे हवे भैया अमौसा का मेला.....।

गुलब्बन के दुलहिं चलें धीरे...