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मेरे कस्मकस ख़यालात अपने जाँ की ख़ूबसूरती के बखान में💔
सोचता हूँ तुझपर, तेरी ख़ूबसूरती पर, तेरी इन अदाओं पर इक क़िताब लिख दूँ
पर, फ़िर डर लगता है कि लिखते हुए कहीं मेरी आँखें नम ना हो जाए
कलम हाथों में अपनी उठाकर सोचता हूँ इक बार, कि तुम्हारी तारीफों में लिखे गए मेरे किताबों के लब्जों को देखकर इस ज़मानेवालों किसी परियों की
कहानियों का भरम ना हो जाए
हाँ वैसे तो तुम नहीं हो मेरी, और हो भी नहीं सकती कभी शायद पर
अपनी अधूरी मुहब्बत की दास्ताँ में भी
जो तुमको, तुम्हारी कशिश तुम्हारी नजाकतों को बयां करूं, तो लगता है कि
तुम्हारे जलनेवालों को कहीं उनके सीने पर
कोई गहरा-सा जख़म ना हो जाए
सोचता हूँ तुझपर, तेरी ख़ूबसूरती पर, तेरी इन अदाओं पर इक क़िताब लिख दूँ
पर, फ़िर डर लगता है कि लिखते हुए कहीं मेरी
आँखें नम ना हो जाए
फिर हर कुछ भुलाकर तुम्हें अपने तसव्वुर में लाकर, बहुत हिम्मत भर दिल में सोचता हूं कि, चलो लिख ही डालूँ पर
ना जाने क्यूँ, अचानक फ़िर लगता है कि लिखा अगर तो तुम्हारी तारीफों में कहीं इस जहां की सारी स्याही ख़तम ना हो जाए, या
फ़िर लिखते हुए कहीं पन्ने कम ना हो जाए

© Kumar janmjai