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करूणा भाव
करूणा भाव की स्थिति एक निष्पक्ष दर्पण की भाँति है।

करूणा के भाव में ऐसा कुछ नहीं है जो समझ में नहीं आता हो। केवल आंतरिक भाव में निश्छल पवित्र भाव परिवर्तन करने से ही सर्व के कार्यों के प्रति करुणा का भाव प्रकट हो जाता है। जहां करुणा का भाव है वहां सब आप में है और आप सबमें हैं। "करूणा" अपने आप में बहुत बड़ी चीज है। "करुणा" शब्द का कोई विपरीत शब्द (विलोम शब्द) नहीं है। "करूणा" सभी द्वंदों से परे के भाव की स्व स्फूर्त भाव स्थिति है। इसलिए ही करूणा का गुण दूसरे अन्य दिव्य गुणों जैसा सामान्य गुण नहीं है। करूणा का गुण चेतना के अंतर्तम के कोने में अपना एक अलग ऊंचा और पवित्र स्थान रखता है। करूणा का फूल वास्तव में चेतना के अंतःस्थल में तब खिलता है जब आत्मा अपने आत्म स्वरूप में पूरी तरह से टिक जाती है और उसे परमात्म मिलन (परम मिलन) का विराट अनुभव हो जाता है। उससे पहले करुणा का विषय सिर्फ बातचीत का विषय ही रहता है।