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हादसा या भूल
पता लिख कर रखा करो जेब में,
हादसे बना देते हैं गुमनाम,
शक्ल से हो नहीं पाती ऐसे मौकों में,
घायल और मृतकों की पहचान।
जाने कब से था प्लान बनाया,
एजेंट से था टिकट बनवाया,
थोड़ी दूर के सफर पर यूँ निकले,
किसकी थी ये भूल, जो जहां गंवाया।
पल भर में जो तूफां आया,
डोर छूटने लगी देखो साँसों की,
हंसते खेलते यात्रियों को देखा,
अब ढेर लगी है वहां लाशों की।
कोई पानी को तरस रहा तो कोई,
सांसों की किल्लत से आंखें मूंद रहा,
एक बूढ़ा बेचारा रोता बिलखता वहां,
लाशों में अपना बेटा ढूंढ रहा।
कोई कहता भूल कोई कहता हादसा,
जिम्मेदारी की गेंद यहां से वहां फेंक रहे हैं,
अधिकारियों को समन, और कमिटी के गठन,
सब बस राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं।
© शैल
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