...

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पहचान
ज़िन्दगी तेरे इस दुआ पर ऐतबार क्या करना?
है जो कहीं नहीं उसका भला इंतज़ार क्या करना?
है जो भी ज़िंदा इस ज़माने में तो दुआ है किसकी?
मौत तेरे इश्क़ में ख़ुद का इख्तियार क्या करना?
हम कब थे कहीं के? कहीं पर ख़ुद से प्यार क्या करना?
लाशों के बीच चलता है जब कफ़न का कहीं इंतज़ार क्या करना?
साथ तेरे तू भी नहीं रहेगा याद कर ले ये आज तू।
तू जो है गुमान में तो ज़िन्दगी पर एहसान क्या करना?
आख़िर क्या करेगा तू कह कर ख़ुद को ज़िंदादिल यहां?
हवस, दौलत, रुतबा है जरूरी तो इंसानों की पहचान क्या करना?

© ज़िंदादिल संदीप