...

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क्या मुझे इंसाफ मिल जाएगा..?
एक नही बल्कि कई दरिंदो के आगे हारी....
सुनाऊँ भी तो आखिर किसे
मैं अपनी लाचरी, हर कोई समझेगा मुझे बेचारी...!!

भला कौन है जो मेरे इस दुख को समझेगा....
क्या मेरी आप बीती को सुनकर
वह सच में ठीक मेरी ही तरह तड़पेगा....!!

कब होगा वो समय जब दुनिया के लोगों तक....
मेरी यह चींख पहुँच पाएगी
क्या हर बार की तरह इस बार भी
पत्थर की इन चार दीवारी मे
मेरी यह आवाज़ एक दिन बंद हो जाएगी....!!

कोई मेरे कपड़ों में दोष बताएगा तो कोई इंसान....
मेरे घर से अकेले निकलने को गलत ठहराएगा
दुनिया के इन्ही सवालों के...